(GIRIDIH) गिरिडीह। लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा कल 17 नवम्बर शुक्रवार से नहाय खाय के साथ शुरू हो रहा है। पर्व को लेकर सभी स्थानों पर विशेष तैयारी का दौर जारी है। इस दौरान जहां युद्ध स्तर पर सभी छठ घाटों व छठ तालाबों की साफ सफाई में स्थानीय युवाओं की टोली जुटी है। वहीं नगर निगम द्वारा भी सड़कों के किनारे एकत्रित कूड़े कचड़ों के ढेर को साफ करने में जुटी है।
बता दें कि सूर्योपासना के इस छठ महापर्व में साफ सफाई का विशेष महत्त्व होता है। पर्व को लेकर जहां छठ घाटों तक के पहुंच पथों की मरम्मत्ति का काम चल रहा है, वहीं छठ घाटों के साथ छठ घाटों तक पहुंचने वाली सड़कों को भी आकर्षक तरीके सजाया जा रहा है। घाटों एवं सड़कों को आकर्षक लाइटों से जगमगया जा रहा है।
पर्व के पहले दिन शुक्रवार को नहाय खाय
गौरतलब है छठ महापर्व के पहले दिन 17 नवंबर शुक्रवार को छठ व्रती नहाय खाय की उपासना करेंगी। व्रती इस दिन सुबह उठ कर सभी नित्यकर्मों से निवृत हो नदी, तालाबों, पोखरों आदि में स्नान कर पूरी निष्ठा के साथ अरवा चावल का भात, चना दाल, कद्दू, कोहड़ा की सब्जी के साथ अन्य मौसमी सब्जी पूरे विधि विधान के साथ बनाती हैं। उसके बाद भगवान सूर्य और छठ मइया को भोग अर्पण कर स्वंय प्रसाद ग्रहण करती हैं। वहीं इस दिन परिवार के अन्य सदस्यों एवं अस पड़ोस के लोग भी इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं।
दूसरे दिन शनिवार को खरना
नहाय खाय की उपासना के बाद दूसरे दिन 18 नवंबर शनिवार को व्रती दिन भर का निर्जला उपवास कर सन्ध्या पहर खरना की उपासना करेंगी। इस दिन व्रती सन्ध्या पहर अरवा चावल की दूध मिश्रित खीर के साथ अरवा चावल की गुड़ मिश्रित खीर समेत अन्य भोज्य पदार्थ पूरी निष्ठा के साथ विधि विधान से बनायेगी। उसके बाद उन भोज्य पदार्थों का भोग माता छठी को अर्पण कर स्वंय प्रसाद ग्रहण करेंगी। उसके बाद सबों को वह प्रसाद दिया जाएगा। खरना का प्रसाद ग्रहण करने छठ व्रती के घर काफी संख्या में लोग पहुंच प्रसाद ग्रहण करते हैं।
तीसरे दिन रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य
वहीं पर्व के तीसरे दिन 19 नवंबर रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य अर्पण किया जाएगा। इस दिन व्रती 36 घण्टे का निर्जला उपवास रखती हैं। वहीं इस दिन छठ व्रती के घर आटे को गुड़ में मिश्रित कर शुद्ध देशी गाय के घी में ठेकुंआ बनाया जाता है। कई स्थानों पर इस दिन ठेकुंआ के साथ अरवा चावल का पुआ और अरवा चावल के आटे को शुद्ध दूध और गुड़ में मिश्रित कर गोल गोल लड्डू (कसार) भी बनाया जाता है। उसके बाद डाला (दौरा) सजाया जाता है। जिसमे डलिया, सुप, सुपती, कढोली (मोनी) शामिल रहते हैं। वहीं कांसा पीतल के बर्तन भी दौरा में शामिल होता है। जिसमे ठेकुंआ, पुआ और कसार के अलावे नारियल, केला समेत अन्य सभी मौसमी फल, ईख, पत्ता सहित लाल मूली, पत्ता सहित गाजर, पत्ता सहित अदरख, पत्ता सहित हल्दी, बैर, अरवा चावल का अक्षत, सिंदूर, अरता पत्ता आदि डाला जाता है। उसके बाद उन दौरा को छठ घाट ले जाया जाता है जहां छठ व्रती उन सभी दौरा को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्पित कर उसमे अर्ध्य अर्पण करती हैं। इस दिन दौरा में अर्ध्य देने वालों का छठा घाटों में तांता लगा रहता है।
सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्ध्य के साथ पर्व का समापन
वहीं अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य अर्पण कर व्रती वापस घर लौटेंगी और पर्व के चौथे दिन 20 नवंबर सोमवार को पुनः छठ घाट पहुंच उन सभी दौरा को उदीयमान सूर्य को अर्पण कर भगवान भष्कर को अर्घ्यदान करेंगी। उदीयमान सूर्य को अर्ध्य अर्पण कर उसी चौथे दिन व्रती 36 घण्टे के निर्जला उपवास का पारण करेंगी। व्रती के पारण के साथ ही चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का समापन हो जाएगा।