SC-ST के लिए बनाई जा सकती है सब-कैटेगरी
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए SC/ST श्रेणियों में सब-कैटेगरी बनाने की अनुमति दे दी है। यह फैसला 6-1 के मत से पारित हुआ है।
महत्वपूर्ण निर्णय
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने अनुसूचित जाति और जनजातियों में सब-कैटेगरी बनाने के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा, और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा थे। हालांकि, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई।
2004 के फैसले को पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में पांच जजों के फैसले को पलट दिया है। उस फैसले में कहा गया था कि केवल राष्ट्रपति ही संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार अनुसूचित जातियों को अधिसूचित कर सकते हैं और राज्यों को इसमें परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।
केस की पृष्ठभूमि
1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो कैटेगरी में विभाजित किया था, जिससे अनुसूचित जातियों के लिए अलग-अलग आरक्षण नीति लागू हुई थी। यह मामला 2006 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष पहुंचा और 2004 में ईवी चिन्नैया मामले के फैसले का हवाला देकर इस पर रोक लगाई गई।
केंद्र सरकार का रुख
2010 में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की धारा 4(5) को रद्द कर दिया था। यह धारा सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों के आरक्षण में ‘वाल्मीकि’ और ‘मजहबी सिख’ जातियों को पहली प्राथमिकता देती थी। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दायर की गईं, जिन पर आज निर्णय सुनाया गया।
न्यायालय की समीक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा की कि क्या राज्य अनुसूचित जातियों और जनजातियों को उप-वर्गीकृत कर सकते हैं और कोटा के अंदर कोटा दे सकते हैं। कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और जनजातियों में सब-कैटेगरी बनाई जा सकती है।
फैसले का प्रभाव
इस फैसले का सीधा असर आरक्षण नीति पर पड़ेगा और अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सब-कैटेगरी के तहत आरक्षण का लाभ मिलेगा। यह फैसला राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बीच आरक्षण के वितरण में अधिक लचीलापन देगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश की आरक्षण नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाएगा और अनुसूचित जातियों और जनजातियों को अधिक न्यायपूर्ण तरीके से आरक्षण का लाभ मिलेगा। अब यह देखना होगा कि राज्य सरकारें इस फैसले को कैसे लागू करती हैं और इससे संबंधित नीतियों में क्या परिवर्तन लाती हैं।