निराला की सरस्वती वंदना वंदना के शिल्प में स्वतंत्रता, ज्ञान और विवेक की पुकार है : डॉ बलभद्र

GIRIDIH (गिरिडीह)। हिंदी के कवि महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जयंती कुछ लोग वसंत पंचमी को तो कुछ लोग 21 फरवरी को मनाते हैं। गिरिडीह कॉलेज के बीएड संभाग ने वसंत पंचमी के दिन कॉलेज बंद होने के कारण इसके एक दिन पूर्व मंगलवार 13 फरवरी को ही निराला जयंती मनाया। इस अवसर पर काव्य पाठ सह परिचर्चा का आयोजन किया गया।

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इस अवसर पर सोलह विद्यार्थियों ने स्वरचित कविताओं के साथ निराला, माखन लाल चतुर्वेदी, ओम प्रकाश वाल्मीकि आदि की कविताओं का पाठ किया। कुछ विद्यार्थियों ने निराला के जीवन और साहित्य के संबंध में भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. बलभद्र सिंह ने की।

 

मौके पर डॉ बलभद्र ने कहा कि कविता लिखना अच्छा और जरूरी काम है। पर, किसी दूसरे कवि की कविता का पाठ करना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस पाठ के लिए कवि और कविता का चयन करना होता है। चयन में व्यक्ति की व्यक्तिगत अभिरुचि काम करती है। डॉ बलभद्र ने निराला रचित सरस्वती वंदना का पाठ करते हुए इसकी भाषा, छंद, लय के साथ इसके अर्थ और सौंदर्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह वंदना के शिल्प में स्वतंत्रता, ज्ञान और विवेक की पुकार है। तीन बंदों की इस कविता में नई गति और नए स्वर की बात है।

 

 

इस दौरान इतिहास विभाग के अवकाशप्राप्त प्रो. डॉ. धनेश्वर रजक ने निराला को छायावादी दौर का अप्रतिम कवि कहा। उन्होंने उनकी प्रगतिशील चेतना को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संचालन बी एड संभाग के सहायक प्रोफेसर धर्मेंद्र कुमार वर्मा ने किया। संचालन के क्रम में उन्होंने निराला की कविता जुही की कली और तोड़ती पत्थर की चर्चा की। उन्होंने सरोजिनी नायडू को भी याद किया। उन्होंने कहा कि सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी को ही हुआ था।

 

इस अवसर पर बीएड संभाग की सहायक प्रोफेसर आशा रजवार, रश्मि कुमारी, अंग्रेजी के सहायक प्रोफेसर सतीश कुमार यादव, रजनी अम्बष्ट, सरिता कुमारी, लक्ष्मण हांसदा, अवधेश मिश्र के अलावे काफी संख्या में बीएड संभाग के छात्र छात्राओं के साथ हिंदी विभाग और इंटर सेक्शन के छात्र छात्राओं ने हिस्सा लिया।

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