◆पारंपरिक पोशाक पहन युवतियां करम डाली की परिक्रमा कर ढोल और मांदर की थाप पर जमकर नाची
DUMRI (GIRIDIH) : “आजे करम गोसाईं घरे दुआरे रे, काइल करम गोसाईं कास नदी पारे रे” …..!!!!! जैसे लोकगीतों से गुंजायमान हुआ पूरा क्षेत्र। प्रकृति पर्व करमा सोमवार को प्रखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में मान्यताओं एवं परंपराओं के साथ हर्षोल्लास मनाया गया। प्रखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में युवतियों एवं अन्य लोगों की समूह करमा के लोकगीत एवं मांदर के थाप पर झुमते नजर आयी। युवतियां पारंपरिक पोशाक धारण कर करम डाली कक परिक्रमा कर नृत्य प्रस्तुत किया।
युवतियां प्रिया सिन्हा, खुशी, परी, अनीता, रेखा, सोनी, पायल, संजना, गीता आदि ने बताया कि करमा पर्व शुरु होने के कुछ दिनों पहले उसमें बालू में जौ, उरद, मक्का, धान आदि डाल दिए जाते हैं। जिसे ‘जावा’ कहा जाता है। जावा को वे करमा पर्व के दिन करम डाली के समीप पूजा अर्चना करती है। इसके बाद अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। उन्होंने बताया कि करमा पर्व के दिन बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। इनके भाई ‘करम’ वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद दूसरे दिन सुबह में करम डाल और जावा को पूरे धार्मिक रीति से तालाब,पोखर,नदी आदि जलाशयों में विसर्जित कर देते हैं। बताया गया कि यह त्योहार भादो एकादशी के दिन मनाया जाता है। मौके पर लोग ढोल और मांदर की थाप पर झूमते गाते हैं।
रिपोर्ट : अजय कुमार रजक